Dry Eye and low blinking: ऑनलाइन पढ़ाई के दौरान बच्चों का कम पलक झपकाना बना मुसीबत, पैदा हो रही ये बीमारी
Dry Eye and low blinking: पलक झपकाने की संख्या कम होने के चलते बच्चों की आंखों में ड्रायनेस और इन्फेक्शन के मामले सामने आ रहे हैं. अभी इसे दवाओं से नियंत्रित किया जा सकता है लेकिन अगर देखने की यह आदत नहीं बदली जाती है तो भविष्य में काफी नुकसान हो सकता है.
कोरोना महामारी (Corona Pandemic) से मची तबाही के बाद अभी भी इसके प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष प्रभाव देखने को मिल रहे हैं. जहां कोरोना से पीड़ित रह चुके लोगों में पोस्ट कोविड इफैक्ट (Post Covid Effect) के रूप में कई बीमारियां सामने आ रही हैं वहीं बिना कोरोना की चपेट में आए भी इससे पैदा हुई बीमारियों (Diseases) की चपेट में बच्चे और बड़े आ रहे हैं.
कोरोना के चलते पिछले साल से चल रही ऑनलाइन पढ़ाई (Online Study) और घरों में बंद रहने का असर अब बच्चों की आंखों पर पड़ रहा है. स्मार्टफोन को टकटकी लगाकर देखने और कम पलक झपकाने (Blinking) के चलते बच्चों की आंखों में ड्रायनेस (Dry Eye) हो रही है जो कई बीमारियों को जन्म दे रही है.
एंडोक्राइन सोसायटी ऑफ इंडिया के पूर्व अध्यक्ष और जाने-माने एंडोक्राइनोलॉजिस्ट डॉ. संजय कालरा कहते हैं कि जब आप पलक झपकाते हैं तो आपकी आंखों को सुरक्षा मिलती है. इस दौरान एक टियर फिल्म बनती है जो आंखों को सुरक्षित रखती है लेकिन कम पलक झपकाने से आंखों में सूखेपन की समस्या पैदा हो जाती है जो आगे चलकर आंखों में इन्फेक्शन (Infection in Eyes) पैदा कर देती है.
इससे आंखों में खुजली, पलक के बालों का उड़ना, आंख लाल होना, आंखें सूखी होना आदि शामिल है. वहीं डायबिटिक रेटिनोपैथी (Diabetic Retinopathy) में भी कम पलक झपकना एक वजह बन रहा है. हालांकि अगर बच्चा या बड़ा कोई भी एक तय सीमा से ज्यादा पलकें झपकाता है तो यह भी बीमारी का लक्षण हो सकता है.
ऑनलाइन पढ़ाई से बच्चों की आंखों ड्रायनेस की समस्या हो रही है.
कालरा कहते हैं कि एक मिनट में स्वस्थ्य आंख के पलक झपकने की अधिकतम संख्या, एक मिनट में हमारे सांस लेने की संख्या के बराबर होती है और दोनों की यह संख्या हमारी हार्टबीट या ह्दयगति का 25 फीसदी होता है. यानि कि हम ऐसे कह सकते हैं कि एक मिनट में अगर हमारा दिल 72 बार धड़कता है तो इसका 25 फीसदी यानि कि प्रति मिनट में अधिकतम 18 बार हमारे पलक झपकते हैं और इतनी ही बार हम एक मिनट में सांस लेते हैं. ऐसा होने से हमारी आंखें स्वस्थ बनी रहती हैं.
डॉ. कहते हैं कि कोरोना के बाद से जब बच्चे पूरी तरह स्मार्टफोन के भरोसे पढ़ाई कर रहे हैं और लॉकडाउन व सख्ती के कारण घरों से बाहर निकलने के बजाय अपना ज्यादातर समय टीवी देखने में गुजार रहे हैं तो आपने भी नोटिस किया होगा कि बच्चा एकटक किसी भी चीज को देखे जा रहा है फिर चाहे वह स्मार्टफोन हो, किताब हो या टीवी हो. कोरोना के बाद से आमतौर पर यह देखा गया है कि बच्चों में पलक झपकाने की संख्या लगातार कम होती जा रही है. जिसका प्रभाव आंखों पर पड़ रहा है.
वे कहते हैं कि पलक झपकाने की संख्या कम होने के चलते बच्चों की आंखों में ड्रायनेस और इन्फेक्शन के मामले सामने आ रहे हैं. अभी इसे दवाओं से नियंत्रित किया जा सकता है लेकिन अगर देखने की यह आदत नहीं बदली जाती है तो भविष्य में काफी नुकसान हो सकता है. खासतौर पर आंखों के देखने की शक्ति घट सकती है.
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