Ek Anokha Yuddh Jisme Hajaaron Jangali pakshiyon Ke Saath Is Desh Ke Sainik Bhid Gae

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कई ऐसे युद्ध जो हमें इतिहास के पन्नों में हमें पढ़ने को मिलते हैं, लेकिन क्या आपने कभी इंसान और पक्षियों के बीच लड़ाई के बारे में सुना या देखा है। आपको ये बात थोड़ी अजीब जरूर लग रही होगी। बता दें कि ये रोचक घटना साल 1932 की है, जिसके बारे में जो भी पढ़ता हैं, वो हैरान हुए बिना नहीं रहता। दरअसल, Australia Government ने प्रथम विश्वयुद्ध के बाद सेवानिवृत हुए कुछ सैनिकों को पुनर्वास के लिए जमीनें दी थी। सैनिकों को जो जमीन मिली थी, वो पश्चिमी ऑस्ट्रेलिया में थीं। अब सैनिक यहां किसान बन गए और अपनी-अपनी जमीनों पर खेती करने लगे, लेकिन कुछ ही समय बाद उनके फसलों पर विशालकाय जंगली पक्षी एमू का हमला हो गया। यहां सबसे हैरान करने वाली बात ये थी कि इन पक्षियों की संख्या 2-4 नहीं बल्कि 20 हजार के करीब थी।

एमू का झुंड आता और किसानों की फसलों को बर्बाद करके चला जाता। सिर्फ यहीं यहीं, उन्होंने खेतों की रक्षा के लिए जो फेंसिंग लगाई थी, उसे भी उन पक्षियों ने तोड़ दिया था। जब ऐसा अक्सर होने लगा तो किसान बने सैनिकों का एक प्रतिनिधिमंडल सरकार के पास अपनी गुहार लेकर पहुंचा। अब समस्या की गंभीरता को देखते हुए किसानों की मदद के लिए ऑस्ट्रेलिया के तत्कालीन रक्षामंत्री ने मशीन गन से लैस सेना की एक टुकड़ी भेजी।

2 नवंबर, 1932 का दिन था। सरकार द्वारा भेजी गई सेना ने एमूओं को भगाने वाला ऑपरेशन शुरू किया। उन्हें एक जगह पर 50 एमूओं का झुंड दिखा, लेकिन जब तक वो मशीन गन से उनपर निशाना लगाते, तब तक उन पक्षियों का झुंड यह समझ गया कि उनपर हमला होने वाला है और वो वहां तेजी से भाग निकले और मशीन गन की रेंज से दूर हो गए। 4 नवंबर, 1932 को भी कुछ ऐसा ही हुआ। सैनिकों ने करीब 1000 एमूओं का एक झुंड देखा और वो उनपर अभी फायर करने ही वाले थे कि मशीन गन जाम हो गई। जब तक मशीन गन ठीक हो पाती, तब तक अधिकतर एमू वहां से भाग गए थे। हालांकि फिर भी सैनिकों ने करीब 12 एमूओं को मार गिराया था, लेकिन इस घटना के बाद से एमू काफी सतर्क हो गए।

कहा जाता है कि इन जंगली पक्षियों ने सैनिकों के हमलों से बचने के लिए खुद को छोटे-छोटे समूहों में बांट लिया था और हर समूह में एक एमू निगरानी के काम में लगा रहता था, ताकि उनपर हमला न हो या हमला होने से पहले ही वो बाकियों को सतर्क कर दे, जिससे सभी वहां से भाग निकलें। इस दौरान वो फसलों को खूब बर्बाद करते रहे, लेकिन जैसे ही उन्हें लगता कि उनपर हमला होने वाला है तो वो वहां से भाग निकलते।

छह दिन तक चले इस ऑपरेशन में सैनिकों द्वारा करीब 2500 राउंड फायर किए गए थे, लेकिन 20 हजार एमूओं में से मुश्किल से वह 50 को ही मारने में सफल हो पाए थे। बाद में जब इन घटनाओं पर मीडिया की नजर पड़ी, तो पूरे देश में इसकी चर्चा शुरू हो गई और सरकार की आलोचना होने लगी। आखिरकार सरकार ने सेना को वापस बुला लिया। लेकिन जब खेतों पर एमूओं के हमले काफी तेज हो गए। ऐसे में एक बार फिर 13 नवंबर को सेना ने ऑपरेशन शुरू किया।

हालांकि, पिछली बार की तरह इस बार भी इन पक्षियों ने सैनिकों को खूब छकाया और उन्हें हारने और वहां से जाने पर मजबूर कर दिया। कहते हैं कि सेना द्वारा चलाए गए इस ऑपरेशन के इंचार्ज मेजर मर्डिथ ने कहा था कि अगर उनके पास भी एमू पक्षियों की एक डिवीजन होती और वो गोली चला सकते, तो वो दुनिया की किसी भी मिलिट्री का सामना कर सकते थे। इस घटना को ‘एमू वॉर’ या ‘द ग्रेट एमू वॉर’ के नाम से जाना जाता है।

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