Ram Asur Review: राम असुर, एक अच्छी कहानी, अच्छा स्केल मिल जाता तो उम्दा होता
Ram Asur Review: राम असुर, एक अच्छी कहानी, अच्छा स्केल मिल जाता तो उम्दा होता
Ram Asur Review: तेलुगु फिल्म राम असुर को अमेजन प्राइम वीडियो पर संक्रांति के दिन रिलीज किया गया. फिल्म की कहानी थोड़ी नए किस्म की है लेकिन फिल्म का स्केल बहुत छोटा है और इसलिए फिल्म को शायद उचित सफलता नहीं मिलेगी. हालाँकि ये एक तेलुगु फिल्म है लेकिन कोई मेलोड्रामा नहीं है फिर भी कुछ सीन्स ऐसे हैं जहाँ पर एक बेहतर प्रोडक्शन डिज़ाइन होती तो शायद ये फिल्म बहुत ज़्यादा चर्चा में रहती.
लेखक निर्देशक त्रिपर्णा वेंकटेश ने कहानी तो अच्छी लिखी थी लेकिन उन्हें इस कहानी को किसी स्क्रिप्ट डॉक्टर या किसी सहयोगी और अनुभवी लेखक के साथ बैठ कर लिखनी चाहिए थी ताकि जो कमज़ोरियाँ हैं वो ख़त्म की जा सकें और एक अच्छी फिल्म बन सके. फिल्म जब थिएटर में रिलीज हुई थी तब इसकी सराहना हुई थी.
राम असुर की कहानी में राम (राम कार्तिक) अपनी गर्लफ्रेंड प्रिया (शैरी अग्रवाल) से ब्रेकअप होने की वजह से दुखी है. उसका एक सपना है कि वो लैब में एक आर्टिफिशियल डायमंड बना सके. दिल टूटने की वजह से वो सपना कहीं रह जाता है. उसका दोस्त उसे एक नाड़ी शास्त्र के ज्ञाता के पास ले जाता है जो उसे सूरी नाम के शख्स को ढूंढने के लिए कहता है. सूरी की खोज में वो सूरी के गांव पहुंच जाते हैं और मिलते हैं सूरी के जिगरी दोस्त से जो उन्हें सूरी की कहानी सुनाता है.
राम और सूरी की कहानी एक जैसी ही है. सूरी का दोस्त, राम को सूरी की डायरी देता है जिसमें सूरी की आर्टिफिशियल डायमंड बनाने की विधि लिखी होती है. राम वापस आ कर अपनी लैब में डायमंड बना लेता है और तभी उसके घर कुछ गुंडे आ कर उस से डायमंड की मांग करते हैं. राम उनकी धुलाई करता है और उनका पीछा करते हुए वो एक ऐसी जगह पहुंच जाता है जहां उसका सामना सूरी से होता है. इसके बाद की कहानी क्या है ये फिल्म में देखना चाहिए.
राम कार्तिक को अभिनय सीखना पड़ेगा. तकरीबन एक फ्रेम में वो एक जैसा चेहरा बना कर घूमते नज़र आते हैं. उनका प्रेम और गुस्सा एक ही जैसा दिखाई देता है. आश्चर्य का भाव उनके चेहरे पर आता ही नहीं है. मार पीट के दृश्यों में भी वो कुछ विशेष करते नज़र नहीं आते. सूरी की भूमिका प्रोड्यूसर अभिनव सरदार ने निभाई है.
इनकी पर्सनालिटी अच्छी है. कद काठी भी ठीक है. अभिनय इनका भी औसत ही है लेकिन राम से बेहतर है. खुद प्रोड्यूसर हैं इसलिए खुद को हीरो बनाने की भरसक कोशिश की है और इनका रोल बिला वजह ही बड़ा रखा गया है. बाकी कलाकार साधारण ही हैं. शेरी अग्रवाल और चांदनी ने ग्लैमर लाने की सफल कोशिश की है. हालांकि, अभिनय इनका भी ख़राब है.
राम असुर की कहानी में ज़्यादा ट्विस्ट नहीं हैं. डायमंड बनाने की विधि में किसी प्रकार की रिसर्च का कोई ज़िक्र नहीं है. आर्टिफिशियल डायमंड एक बहुत ही बड़ा और सफल व्यवसाय है, कोई इसे घर में बनाने की मूर्खता क्यों करेगा इसका कोई ज़िक्र नहीं है. राम और सूरी के मन में आर्टिफिशियल डायमंड बनाने की सनक क्यों है इसका कोई मजबूत कारण भी समझ नहीं आता.
दोनों ही हेरोइन इतनी आसानी से ब्रेकअप कर लेती हैं और हीरो के विरोधी से प्रेम कर बैठती हैं. इतने उथले रिश्ते पर कोई अपनी ज़िन्दगी क्यों ख़राब करेगा वो समझ के बाहर है. ऐसी कई विसंगतियां और कमज़ोरियां हैं जो कि स्क्रिप्ट के स्तर पर सुधार दी जानी चाहिए थीं. इसके अलावा भी प्रोडक्शन डिज़ाइन इस तरह की है कि राम के घर की लैब भी साधन विहीन है और करीब 30 साल पहले की सूरी की लैब में तो कुछ भी नज़र नहीं आता.
राम और सूरी की ज़िन्दगी एक जैसी दिखाई गयी है लेकिन अंत में राम के मित्र और सूरी के मित्र के बीच का रहस्योद्घाटन बहुत ही कमज़ोर लगता है. विलन की गुंजाईश पैदा की गयी और उसे बीच कहानी में कहीं छोड़ दिया गया. डायमंड बनाने का फार्मूला कहानी की रीढ़ है लेकिन कहानी में कनफ्लिक्ट लड़की की वजह से होता है जिसका डायमंड से कोई कनेक्शन नहीं होता. ऐसी गलतियों की वजह से फिल्म की कहानी कमज़ोर जान पड़ती हैं.
प्रभाकर रेड्डी की सिनेमेटोग्राफी और बसवा पायडीरेड्डी की एडिटिंग में कुछ भी तारीफ करने जैसा है नहीं. एडिटिंग का काम तब सही होता है जब कहानी की लिखाई और प्रोग्रेशन सही तरीके से किया गया हो. संगीत भीम्स सेसिरोलो का है जो थोड़ा नयापन लिए हुए है और एक्शन सीक्वेंस में अच्छा भी सुनाई देता है. गानों की गुंजाईश बनायीं गयी है.
दरअसल अच्छी कहानी में गानों की जगह बनानी नहीं पड़ती अपने आप चली आती है. कमज़ोर कहानी में गाने घुसाए जाते हैं. हालांकि राम असुर में गाने घुसाने तो नहीं पड़े हैं लेकिन कहानी कोई कुछ खास फायदा हुआ नहीं है. फिल्म देखने का जहां तक सवाल है, इसे देखने की कोई मजबूत वजह नहीं है लेकिन फिल्म की पढ़ाई करने वाले इसे देखकर कहानी की स्केल से होने वाले नुकसान को समझ सकते हैं. जैसे करण जौहर की फिल्म कलंक का स्केल बहुत बड़ा था और कहानी कमज़ोर इसलिए फिल्म पिट गयी. राम असुर का स्केल छोटा है इसलिए देखने वाले निराश होंगे.