Review: Your Honour Season 2 का पहला सीजन बेहतर था
Your Honour Season 2 Review: जब आप एक वेब सीरीज देखते हैं जिसमें आप एक जज को कानून की सीमाओं के परे जा कर काम करते देखते हैं तो पहले तो लगता है कि ये किरदार ही गड़बड़ है लेकिन धीरे धीरे ये साफ़ होता है कि जज साहब सिर्फ पुत्र मोह में ये सब किये जा रहे हैं. पुत्र मोह में धृतराष्ट्र मानसिक रूप से भी देखने से बाधित हो गए थे
फिर ये तो एक डिस्ट्रिक्ट कोर्ट के जज हैं. योर हॉनर के दूसरा सीजन हाल ही में सोनी लिव पर रिलीज हुआ है और चूंकि पहले सीजन की कहानी ही आगे बढ़ाई गयी है, इसलिए एक दो नए किरदार आते हैं तो खलते नहीं हैं. इस सीरीज का और कोई नया सीजन आने की उम्मीद नहीं है. सीरीज दमदार है क्योंकि अभिनेता सब टॉप क्लास हैं और निर्देशन भी अच्छा है जबकि ये सीरीज, इजराइल की ही एक प्रसिद्ध सीरीज का ऑफिशियल रूपांतरण है.
क्वोडो नाम की इजराइल की वेब सीरीज का प्लॉट धमाकेदार है. एक ईमानदार जज, जिसके फैसले हमेशा सही और गलत का अंतर स्पष्ट कर देता हैं, अपने एकलौते बेटे को लेकर परेशान रहते हैं. अचानक उन्हें पता चलता है कि उनके बेटे ने उनकी गाडी से हाईवे पर किसी मोटरसाइकिल वाले को टक्कर मार दी है.
जा कर देखने पर पता चलता है कि मोटरसाइकिल सवार एक माफिया मुड़की परिवार का बड़ा बेटा है. जज साहब अपने एक मित्र की मदद से कार को ठिकाने लगा देते हैं. एक और माफिया, पंडित परिवार की दखलंदाज़ी की वजह से जज साहब के इसी दोस्त की जान चली जाती है और इस माफिया परिवार का सरगना पंडित भी मारा जाता है. जज साहब अपने बेटे को बचाने के लिए हर संभव कोशिश करते हैं और एक ऐसा जाल बुनते हैं जिसमें वो खुद फंसते जाते हैं.
माफिया परिवार अपने बेटे का बदला लेना चाहता है और जज साहब अपने बेटे को बचाना. मुड़की परिवार का बेटा बच तो जाता है लेकिन वो चोट दिमाग पर लगी होने की वजह से वो पूरी तरह विकलांग हो जाता है. वो ठीक हो कर बदला न ले, इसके लिए जज साहब उसको गोली मार कर ख़त्म कर देते हैं.
सीजन 2 की कहानी इसके आगे की है. जज का बेटा एक्सीडेंट केस की वजह से जेल में होता है, जज माफिया परिवार से समझौता करना चाहता है. उधर दूसरा माफिया परिवार अभी भी जज और उनके मृतक दोस्त की बेवा का हिसाब करना चाहते हैं. एक लम्बी दौड़ भाग के बाद ज़िन्दगी थोड़ी ढर्रे पर आने लगती है तो एक और हादसा होता है जिसमें जज अपने बेटे को खो देता है.
चूंकि वेब सीरीज एक एडाप्टेशन है इसलिए कहानी, और पटकथा के तौर पर तो ज़्यादा कुछ करना भी नहीं पड़ा है लेकिन भारतीयकरण करने में लेखक द्वय नीरज पांडे (निर्देशक नहीं) और ईशान त्रिवेदी ने मिल कर अच्छा काम किया है. कहानी को लुधियाना में बसाया गया है और किरदारों को भी वहां का लोकल रंग दिया है. लेखनी की प्रशंसा करनी होगी, काफी डिटेलिंग की गयी है, किरदारों पर मेहनत भी नज़र आती है.
वेब सीरीज के एटलस हैं जिमी शेरगिल. इन्होने उम्र को गिरफ्तार कर रखा है. इतने सालों बाद भी चेहरे पर ईमानदारी और मासूमियत नज़र आती है. बतौर जज उन्होंने अपनी भावनाओं को दरकिनार रख कर फैसले दिए हैं लेकिन जब बात खुद पर आती है तो वो कुछ भी कर गुजरने को तैयार हो जाते हैं. जिमी अपनी भूमिका में बहुत जंचे हैं. उनके मित्र की भूमिका में वरुण बडोला हैं. वरुण कम काम करते हैं लेकिन बहुत ही अच्छा काम करते हैं. पर्सनालिटी को रोल के हिसाब से मोड़ लेते हैं.
सीजन 1 के अंत में इनकी मौत हो जाती है लेकिन सीजन 2 में इनकी भटकती आत्मा जज साहब का मानसिक अंतर्द्वंद्व दिखाने का काम करती है, गिलटी कॉन्शियन्स की तरह. सीजन 2 में गुलशन ग्रोवर और माही गिल के किरदार ठूंसे गए हैं. अभिनेता अच्छे होने की वजह से वो काफी जगह पर स्क्रिप्ट की कमज़ोरी बचा जाते हैं. मीता वशिष्ठ का जबरन पंजाबी एक्सेंट अगर नज़र अंदाज़ कर दें तो वो जज जिमी को कांटे की टक्कर देती हैं. मीता ने अभिनय का अनुभव डाला है और अपने किरदार को एक अलग मकाम तक पहुंचा दिया है.
कुछ किरदार सीजन 2 में नमूदार हुए हैं लेकिन उनके बगैर भी काम चल सकता था. एक अहम किरदार ज़ीशान क़ादरी का है. अपने भाई की मौत का बदला लेने की फ़िराक से वो जज और उनके दोस्त की बेवा से हिसाब करना चाहता है. वो लुधियाना में यूपी या बिहार के भैया गैंग के लीडर बने हैं. भाषा मिश्र सी है और पंजाबी बोलते नहीं हैं तो ऐसा लगता है कि गैंग्स ऑफ़ वासेपुर का फ्लेवर अभी तक ज़िन्दा हैं. उनके कपडे, उनकी टीशर्ट, उनका फ़ोन या उस फ़ोन पर भोजपुरी गीत की रिंगटोन, ये सब बढ़िया लगा है लेकिन वो ओवर एक्टिंग करते रहे.
निर्देशन ई निवास और अब्दुल अज़ीज़ खोकर ने मिल कर किया है. एडाप्टेशन में ज़्यादा करने की गुंजाईश तो होती नहीं है क्योंकि ये फ्रेम बाय फ्रेम एडाप्टेशन हैं फिर भी कहानी को रोचक और रफ़्तार से भरी बनाये रखने के लिए निर्देशक द्वय की तारीफ की जाना चाहिए. योर हॉनर सीजन 2 भी सीजन 1 जितना जोरदार तो नहीं है क्योंकि सीजन 1 में आप कलाकारों और किरदारों से परिचय बना रहे होते हैं और आपको सब कुछ सिरे से देखना समझना होता है.
सीजन 2 में आपको अप्रत्याशित रूप से कुछ देखने को नहीं मिलता इसलिए झटके नहीं लगते. दोनों सीजन साथ में देखना शायद थोड़ा भारी पड़ेगा लेकिन हर एपिसोड आपको बाँध के रखता है और हर एपिसोड का अंत एक ऐसे मोड़ पर होता है जहाँ अगला एपिसोड देखना मजबूरी हो जाती है. ये लेखक और निर्देशक मण्डली की जीत है. ज़रूर देखिये.