Shyam Singha Roy Review: एक्टर नानी के फैंस के लिए ‘श्याम सिंघा रॉय’ एक बढ़िया फिल्म है

Shyam Singha Roy Review: एक्टर नानी के फैंस के लिए ‘श्याम सिंघा रॉय’ एक बढ़िया फिल्म है

Shyam Singha Roy Review: पुनर्जन्म पर ढेर फिल्में बन चुकी हैं और इनका प्लॉट लगभग एक जैसा ही होता है. हिंदी फिल्मों में मधुमती, कुदरत, और कर्ज़ नाम हमको याद आते हैं. दक्षिण भारत में पुनर्जन्म की थीम को बड़े अच्छे से इस्तेमाल किया जाता रहा है और कई बार उसमें विज्ञान भी जोड़ दिया जाता है.

मगधीरा, ईगा, अनेगन बॉक्स ऑफिस पर सफल भी रही हैं. इसमें ‘ईगा’ का उल्लेख करना ज़रूरी है क्योंकि इसमें विलन द्वारा लड़की को पाने के लिए उसके बॉयफ्रेंड की हत्या कर दी जाती है और बॉयफ्रेंड फिर मक्खी के रूप में जन्म लेता है और उसी स्वरुप में विलन से बदला लेता है. ये फिल्म एसएस राजमौली (बाहुबली) द्वारा निर्देशित थी. इस फिल्म में बॉयफ्रेंड का रोल किया था अभिनेता ‘नानी’ ने और अब यही कलाकार आये हैं

निर्देशक राहुल सांकृत्यायन की फिल्म ‘श्याम सिंघा रॉय’ में जिसमें वो एक बार फिर पुनर्जन्म के शिकार होते हैं. कहानी भले ही आसान हो उसका स्क्रीनप्ले फिल्म को बेहतर से बेहतरीन बना देता है और ये फिल्म उसका अच्छा और सच्चा उदहारण है. इसे देखा जाना चाहिए. फिल्म नेटफ्लिक्स पर उपलब्ध है, अंग्रेजी सब-टाइटल के साथ.

फिल्म निर्देशक बनने का ख्वाब देखने वाले सॉफ्टवेयर इंजीनियर वासु (नानी), एक शॉर्ट फिल्म बना कर एक प्रोड्यूसर को इम्प्रेस कर लेते हैं और उन्हें एक फीचर फिल्म बनाने का काम मिलता है. वासु को इस नयी स्क्रिप्ट का क्लाइमेक्स नहीं सूझ रहा होता जिस वजह से वो शराब पी लेते हैं.

अचानक उनकी उंगलियां कीबोर्ड पर चलने लगती हैं और स्क्रिप्ट पूरी हो जाती है जो कि प्रोड्यूसर को बेहद पसंद आ जाती है. वासु अपनी स्क्रिप्ट पर फिल्म बनाते हैं और फिल्म का हिंदी रीमेक की घोषणा करने के लिए प्रेस कांफ्रेंस चल रही होती है जब पुलिस वासु को पकड़ कर ले जाती है. इलज़ाम होता है कि वासु की स्क्रिप्ट किसी श्याम सिंघा रॉय नाम के लेखक की किताब से 90% तक मिलती है.

कोर्ट से बेल मिलने पर वासु की गर्लफ्रेंड और शॉर्ट फिल्म की हीरोइन कीर्ति (कीर्ति शेट्टी) उसे हिप्नोटाइज करवाते हैं और तब कहानी से पर्दा उठता है. इस बैकस्टोरी या यूं कहें की फिल्म में श्याम सिघा रॉय की असली कहानी अपने आप में लेखक की दिमागी उर्वरा शक्ति की बढ़िया मिसाल है. श्याम सिंघा की कहानी 1969 में घटती है जब देश में राजनीतिक और सामाजिक बदलाव की एक बयार बह रही थी और बंगाल में हमेशा की तरह विचारक और लेखक इस बदलाव में सबसे आगे थे.

फिल्म की कहानी पुनर्जन्म की होने के बावजूद उसमें कई खूबसूरत सोशल मैसेज रखे गए हैं. अस्पृश्यता के खिलाफ श्याम एक प्यासे दलित शख्स को उठा कर कुंए में फेंक देता है और कहता है कि जिस धरती पर ये दलित चलता है उस पर मत चलिए, जिस हवा में वो सांस लेता है उस हवा में सांस मत लीजिये।

ज़मीन, हवा, और पानी पर सबका अधिकार है. श्याम नास्तिक है और इसलिए ईश्वर की पूजा से गुरेज नहीं हैं वो उन पुजारियों के खिलाफ है जो लोगों को बेवकूफ बना कर उनका फायदा उठाते हैं. लड़कियों को देवदासी बना कर उनका विवाह एक पत्थर की मूर्ति से करते हैं लेकिन उनका शारीरिक शोषण करने से बाज़ नहीं आते.

श्याम सिंघा रॉय जब एक प्रिंटिंग प्रेस में काम करता है तब भी वह अखबार के जरिये, अपनी किताबों के जरिये समाज में फैली विसंगतियों के खिलाफ लिखता है और जल्द ही लोगों में लोकप्रिय हो जाता है लेकिन वो अपनी कमाई से देवदासियों के पुनरुत्थान के लिए एक ट्रस्ट स्थापित करता है.

अभिनेता नानी (असली नाम घंटा नवीन बाबू) को हिंदी फिल्मों के दर्शक अभी नहीं जानते हैं. राजमौली की फिल्म मक्खी (ईगा) में वो समांथा के बॉयफ्रेंड बने थे. उनकी फिल्म जर्सी का हिंदी रीमेक बन रहा है जिसमें उनकी भूमिका शाहिद कपूर निभा रहे हैं. नानी तेलुगु फिल्मों में एक अलग स्थान रखते हैं और उन्हें रोल की लम्बाई या रोल में नेगेटिव शेड वाली भूमिकाएं करने से कोई गुरेज़ नहीं है.

इस फिल्म में भी उन्होंने काफी मेहनत की है. श्याम सिंघा और वासु दोनों किरदार एक जैसे हैं लेकिन दोनों के तेवर और मिजाज अलग अलग हैं. दोनों की विचारधारा अलग है. पुनर्जन्म की फिल्मों में ऐसा कम देखने को मिलता है. साई पल्लवी और कीर्ति, दोनों ही हीरोइन का रोल छोटा ज़रूर है लेकिन महत्वपूर्ण है.

साई के हिस्से में थोड़े ज़्यादा सीन हैं लेकिन फिल्म का नाम श्याम सिंघा रॉय है तो निर्देशक ने नानी के रोल पर ही फोकस किया है. कहानी का ट्विस्ट अच्छा लगता है, अप्रत्याशित होते हुए भी घटिया तरीके से चौंकाता नहीं है. हिप्नोटिज़म का भी सही इस्तेमाल किया है और उसकी पद्धति भी आधुनिक रखी है.

फिल्म के शुरूआती हिस्से में थोड़ी कॉमेडी और थोड़ा रोमांस रखा गया है जो कि श्याम सिंघा के आने से पहले ज़रूरी था. मडोना सेबेस्टियन और मुरली शर्मा का रोल छोटा था और महत्वपूर्ण था. कोर्ट केस में कानूनी कार्यवाही का मज़ाक नहीं उड़ाया गया है. हालांकि कहानी चुराने या प्लेजियरिज़्म के केस में सीधे जेल की जा सकती है ये बात अजीब लगी. केस फाइल होने के बाद कोर्ट द्वारा जांच की जाती है और फिर सज़ा सुनाई जा सकती है.

निर्देशक राहुल सांकृत्यायन की यह तीसरी फिल्म है. पहली दो फिल्मों की तुलना में यह फिल्म बहुत बेहतरीन बन गयी है और इसका क्रेडिट इसके लेखक सत्यदेव जंगा को देना चाहिए जिन्होंने इस फिल्म की कहानी लिखी है. सत्यदेव ने कई नाटकों में अभिनय किया है और वर्षों से दक्षिण भारत की प्रमुख ऑडियो कंपनी आदित्य म्यूजिक में काम करते रहे हैं.

कम लोग जानते हैं कि सत्यदेव ने बरसों पहले राम गोपाल वर्मा की फिल्म ‘शिवा’ के लिए ऑडिशन दिया था लेकिन एक दुर्घटना की वजह से उनके हाथ से रोल चला गया था. ये स्क्रिप्ट उनकी पहली फिल्म स्क्रिप्ट है. कहानी सुनते ही पहले निर्देशक राहुल और फिर अभिनेता नानी ने इस फिल्म को करने का मन बना लिया था. फिल्म में 5 गाने हैं और टाइटल ट्रैक ‘श्याम सिंघा रॉय’ बहुत देर तक दिमाग में गूंजता रहता है.

संगीत मिक्की जे मायर का है. फिल्म के सिनेमेटोग्राफर कार्तिक कॉलिंग कार्तिक, वज़ीर, और बधाई हो के सिनेमेटोग्राफर सानू होजे वर्गीस हैं. इनका उल्लेख करना इसलिए ज़रूरी है कि फिल्मों में कोलकाता को कई बार कई तरीके से दिखाया जा चुका है लेकिन सानू की नजर से कोलकाता, वो भी सत्तर के दशक का, एक अलग ही छटा लिए हुए है.

सिनेमा की उनकी समझ उनके कैमरा और शेड्स से समझी जा सकती है. एडिटर नवीन नूली हैं, जिन्होंने कम से कम पिछले 5-6 सालों में तेलुगु की बड़ी और हिट फिल्मों की एडिटिंग की है. इतनी बड़ी कहानी को समेटने में उनका काफी योगदान है. श्याम और वासु दोनों की कहानियां सलीके से एडिट की गयी हैं और दोनों को पर्याप्त समय दिया गया है ताकि किरदार उभर कर आ सकें, और इसके बावजूद फिल्म की अवधि नियत्रित है.

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