‘Tabbar’ Web Series REVIEW: अभिनय की मास्टर क्लास है ‘टब्बर’
‘Tabbar’ Web Series REVIEW: पति, पत्नी और बच्चे यानी पंजाबी में ‘टब्बर’. सोनी लिव पर रिलीज इस 8 एपिसोड की वेब सीरीज को बेहतरीन अभिनय की मास्टर क्लास के तौर पर देखा जाना चाहिए. अनुभवी और अभिनय कला में पारंगत अभिनेताओं से सजी इस वेब सीरीज में पवन मल्होत्रा, सुप्रिया पाठक, रणवीर शौरी के साथ कम अनुभवी गगन अरोरा, साहिल मेहता और परमवीर चीमा ने लेखक हरमन वडाला और निर्देशक अजीत पाल सिंह की जोड़ी की इस कृति को क्या सशक्त रूप प्रदान किया है?
ये एक ऐसी वेब सीरीज है, जो समय और कालखंड पर निर्भर नहीं है, लेकिन कहानी के जरिए एक एक सूत्र को इतने महीन रूप से गूंथा है कि कुछ विचित्र गलतियां भी छुप जाती हैं. अच्छी वेब सीरीज की श्रृंखला में सोनी लिव की ये प्रस्तुति ‘महारानी’ जैसी खूबसूरत है.
पंजाब में बुद्धिमान किसानों की मेहनत से व्यावसायिक खेती बहुत फलती फूलती रही है. बरसों के संघर्ष से बाद पंजाब की खेती में एक सिस्टम बन गया है. कृषि की प्रक्रिया में मशीनों और बिहार-उत्तर प्रदेश के मजदूरों की वजह से इफरात में कमाई होती है. कुछ राजनीति, कुछ पडोसी मुल्क की शातिर चालें और बहुत हद तक बाप दादाओं का जमा किया हुआ पैसा,
पंजाब के लड़कों को ड्रग्स की गर्त में धकेलता आ रहा है. बरसों हो गए हैं, लेकिन ये किस्से अभी तक चले आ रहे हैं. इस नशे की लत की वजह से अपराध होते हैं और अब मध्यम वर्ग के युवा भी चरस, गांजा, हीरोइन, कोकीन और कई तरह के नशे के आदी हो चुके हैं. टब्बर, इस नशे की तस्करी के एक केस की वजह से एक सामान्य परिवार पर आने वाली मुसीबतों की कहानी है. क्या एक अच्छी जिंदगी जीने की लालसा ही अपराध होने की असली वजह है?
टब्बर एक लाजवाब कृति है. कानून का पालन करने वाला एक पिता अपने बच्चों, अपने परिवार के लिए किस हद तक कानून को तोड़ने का काम कर सकता है? किराने की दुकान चलाने वाला ओंकार सिंह (पवन मल्होत्रा) अपनी पत्नी सरगुन (सुप्रिया पाठक) और अपने दो बेटों हैप्पी (गगन अरोरा) और तेगी (साहिल मेहता) के साथ अभावों में भी जिंदगी चलाने की कोशिश करता है.
ट्रेन में बैग बदल जाने की वजह से स्थानीय नेता अजीत सोढ़ी (रणवीर शौरी) का छोटा भाई महीप सोढ़ी (रचित बहल) उनके घर आ धमकता है और हाथापाई में महीप को गोली लग जाती है और वो मर जाता है. इसके बाद की कहानी में ओंकार को अपने परिवार को पुलिस के चंगुल से बचाने के लिए एक के बाद एक अपराध करने पड़ते हैं और आखिर में उसे अपनी पत्नी को भी जहर देने का काम करना पड़ता है.
अभिनेता हरमन वडाला ने जालंधर (पंजाब) के सामाजिक तानेबाने को ध्यान में रखते हुए एक स्याह सी कहानी की रचना की है. अपने मित्र अभिनेता संदीप जैन और एक रहस्यमई श्रीमान रॉय की मदद से उन्होंने इसे एक कसी हुई पटकथा की शक्ल दी है. सीरीज का हर एक सीन काफी ध्यान से रचा गया है. एक पल के लिए भी दर्शकों को नजरें हटाने की गुंजाईश नहीं दी गयी है. पूरे समय एक तनाव बना रहता है. हर बार लगता है कि
अब शायद ये केस खुल जाएगा और परिवार बिखर जाएगा, लेकिन कहानी में नया मोड़ आता है और फिर से दर्शक सोचने के लिए मजबूर हो जाते हैं. ओंकार के काइयां पडोसी महाजन (बाबला कोचर) हों, या ओंकार का भतीजा लकी (परमवीर सिंह चीमा) या फिर अजीत सोढ़ी का दाहिना हाथ मुल्तान (अली), अपने अपने तरीके से ओंकार और उसके परिवार का भेद खोलना चाहते हैं या उन्हें खत्म करना चाहते हैं. लेखक मंडली की तारीफ करनी होगी कि ओंकार हर बार अपने दिमाग का इस्तेमाल कर के उन्हें बचा लेता है.
पवन मल्होत्रा ने पिछले कुछ सालों में इतनी बार एक सरदार किरदार निभाया है कि यकीन नहीं होता कि वो सरदार नहीं हैं. पवन एक ऐसे अभिनेता हैं जिनको देखना किसी अभिनय स्कूल को अटेंड करने जैसा है. ब्लैक फ्राइडे में वो टाइगर मेमन की भूमिका में थे. ऐसा लगा था कि शायद टाइगर मेमन ऐसा ही होगा. कभी सड़कछाप मवाली, तो कभी गुंडे, कभी स्पोर्ट्स कोच, तो कभी इंस्पेक्टर, पवन हर रोल को अपने अंदर उतार लेते हैं.
ओंकार सिंह का किरदार भी उन्होंने बखूबी निभाया है. अपने परिवार को बचाने के लिए एक पिता क्या क्या कर गुज़रता है और फिर भी चेहरे पर कभी अपराध बोध नज़र न आ जाये इस बात का ख्याल रखता है. पवन अद्भुत हैं. उनकी आंखें बोलती हैं. चेहरे पर खीज, हताशा, मुस्कराहट, और जाने कितने भाव अपनी पूरी शिद्दत के साथ नज़र आते हैं. उनकी पत्नी की भूमिका में सुप्रिया पाठक ने उन्हें अभिनय में पत्नी की ही तरह जोड़ी निभाई है. सुप्रिया कभी खिचड़ी की हंसा बनती हैं और कभी रामलीला में खूंखार धनकोर बा. अपने हर किरदार में सुप्रिया ने अभिनय का पूरा इंद्रधनुष बिखेरा है.
सरगुन के रोल में इस वेब सीरीज में अपने भारी भरकम शरीर, मीठा खाने की लत, इन्सुलिन के इंजेक्शन और अपनी आंखों के सामने अपने पति को एक के बाद एक हत्याएं करते देख कर दिमागी संतुलन खो बैठने वाली सुप्रिया को अभिनय करते देखने से इस कला की गहराई को समझना आसान हो जाएगा. रणवीर शौरी का रोल छोटा है मगर इतने भी वो आंखों से कमाल कर जाते हैं. एक अच्छे और ईंमानदार इंस्पेक्टर लकी की भूमिका में परमवीर सिंह चीमा ने प्रभावित किया है.
स्क्रिप्ट में कुछ खामियां भी हैं. कुछ किरदार फालतू भी हैं. इन सबके बावजूद, हर किरदार के लिए जो अभिनेता चुने गए हैं, वो लाजवाब हैं. कास्टिंग मुकेश छाबड़ा ने की है और उन्हें इस तरह के डार्क और थ्रिलर ड्रामा में कास्टिंग का चैंपियन माना जाता है. स्क्रिप्ट में टाइम लाइन का ध्यान रखने की संभावनाएं नहीं थी. हर काम बड़ी आसानी से हो जाता है.
पहली हत्या तो गलती से होती है लेकिन बाद की सारी हत्याएं प्लानिंग के साथ होती हैं. इन सबकी कोई तयारी नहीं की गयी और अचानक ही परिस्थितयां ओंकार के लिए मुफ़ीद हो जाती हैं. उसके पास ज़हर भी होता है जो दवाई की तरह ब्लिस्टर पैक में मिलता है और ज़हर पानी में मिला कर दिया जा सकता है. हैप्पी यानि गगन के पैर में चोट लग जाती है जो पूरी सीरीज में ठीक तो नहीं होती मगर वो चलता है, स्कूटर चलाता है,
कार चलाता है, और मोटर साइकिल चलाते हुए लड़की के कंधे से बैग भी लूट लेता है. ऐसे ही कुछ लॉजिक से परे घटनाओं की वजह से कहानी पर से भरोसा कम होने लगता है लेकिन पवन और सुप्रिया अपने अभिनय से उसे वैतरणी पार करवा देते हैं. कहानी का अंत मार्मिक है.
जिस तरह दृश्यम फिल्म में अजय देवगन अपने परिवार के लिए तमाम हथकंडे अपना कर पुलिस को बेवकूफ बनाते हैं, टब्बर में भी मूल कथा यही है, बस ओंकार सिंह का किरदार बिना किसी संवेदना और सहानुभूति के अपने परिवार के विरोधियों को ख़त्म करते जाता है. टब्बर में ओंकार से डर लगने लगता है.
वेब सीरीज का संगीत स्नेहा खानवलकर का है. एमटीवी के शो “साउंड ट्रिपिंग” के लिए स्नेहा ने पंजाब के कस्बों की यात्रा की थी और वहां के संगीत की भरपूर समझ हासिल की थी. पंजाबी भाषा के साहित्य की जन्मदाता माने जाने वाले पाकिस्तान के मुस्लिम संत बाबा फरीद के लिखे हुए गीत, गुरूद्वारे के शबद और कीर्तन का बड़ा ही सुन्दर प्रयोग किया गया है. कैमरे के पीछे एक और अद्भुत कलाकार हैं – अरुण कुमार पांडे. सारे शॉट्स बड़े ही टाइट रखे हैं.
कैमरा चेहरों के करीब रखा है और इस वजह से तनाव को आप चेहरों पर पढ़ सकते हैं और यह आपके दिमाग पर भी तनाव बना देता है. अरुण के कैमरा वर्क की तारीफ करनी पड़ेगी क्योंकि हर फ्रेम में आपको सिर्फ ज़रूरी चीज़ें ही नज़र आएंगी. परीक्षित झा की एडिटिंग है तो बहुत अच्छी लेकिन कहानी में ली गयी सिनेमेटिक लिबर्टी की वजह से ऐसे सीन रखने पड़े हैं जिन पर भरोसा करने की कोई वजह नहीं है.
टब्बर के लिए 5 घंटे एकसाथ बिताना शायद संभव न हो लेकिन इसे टुकड़ों टुकड़ों में देखिये. हर एपिसोड में एक नए किस्म का तनाव, एक नया रोमांच और एक नया थ्रिल है. हॉटस्टार पर रिलीज़ “ग्रहण” की ही तर्ज़ पर सोनी लिव का “टब्बर”, सरदारों के घर की कहानी है.
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