प्याज़ लहसुन क्यों नहीं खाना चाहिए?इसके कई फायदे हैं तो क्यों इसे हम छोड़े??

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प्याज़-लहसुन-क्यों-नहीं-खाना-चाहिए

प्याज़ लहसुन क्यों नहीं खाना चाहिए? इसके कई फायदे हैं तो क्यों इसे हम छोड़े?

इसको scientifically और spiritually प्रूफ कीजिये क्यों नही खाना है?

अन्न का मन पर प्रभाव

कहते है जैसा अन्न वैसा मन अर्थात हम जो कुछ भी खाते है वैसा ही हमारा मन बन जाता है।अन्न चरित्र निर्माण करता है।इसलिए हम क्या खा रहे है इस बात को सदा ध्यान रखना चाहिये।

भोजन भी तीन प्रकार का होता है।

1. सात्विक अन्न
2. रजोगुणी अन्न मैदा से बनी आइटम्स
3. तमोगुणी आहार

इनमें से मुख्य दो आहार है :

1. सात्विक व
2.तामसिक

◎◎◎ योग पथ पर चलने वाले को सात्विक आहार ही लेना चाहिए। सात्विक आहार मानसिक पवित्रता को बढ़ाता है। हमारे इस दिव्य ज्ञान का ध्येय है-
“पवित्र बनो, योगी बनो ”

पवित्रता ही सुख-शान्ति की जननी है……

“PURITY IS THE MOTHER OF ALL VALUES”

◎◎◎ पवित्रता की धारणा मन्सा, वाचा, कर्मणा द्वारा होती है।मानसिक पवित्रता ही शारीरिक पवित्रता का आधार है।मानसिक पवित्रता अर्थात आत्मा के स्वधर्म की स्मृति शांति, सुख, ज्ञान, आनन्द, प्रेम के विचारों में रमण करना। सहज, सरल, मृदुभाव, आत्मिक भाव में रहना पवित्रता है।

◎◎◎ तामसिक भोजन मानसिक अपवित्रता है।अन्न की शुद्वता हो जिसमें तामसिक भोजन लहसुन, प्याज, तीखा मिर्च मसाला, नॉन वेज(मीट) आदि ना हो। आधिक भोजन भी वर्जित है।

◎◎◎ कोई भी व्यसन स्मोकिंग शराब आदि नशे हमें हमारे मूल स्वभाव में ठहरने नहीं देते हैं। शारीरिक कमजोरी पैदा करते हैं। मन में भारीपन, डर, शंका, ईर्ष्या, घृणा, बदले की भावना पैदा करते हैं। काम , क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार, कुद्दष्टि, कुवृत्ति को बढ़ावा देते हैं। संकल्पों में वेग उत्पन्न कराते हैं।
कहा जाता है कि जो भी प्याज और लहसुन खाता है उनका शरीर राक्षसों के शरीर की भांति मज़बूत हो जाता है लेकिन साथ ही उनकी बुद्धि और सोच-विचार राक्षसों की तरह दूषित भी हो जाते हैं। इन दोनों सब्जियों को मांस के समान माना जाता है। जो लहसुन और प्याज खाता है उसका मन के साथ-साथ पूरा शरीर तामसिक स्वभाव का हो जाता है।

प्याज़-लहसुन-क्यों-नहीं-खाना-चाहिए

◎◎◎ श्रीमद् भगवद्गीता में 17 वें अध्याय में भी कहा गया है व्यक्ति जैसा भोजन (लहुसन, प्याज….. तामसिक) खाता है, वैसी अपनी प्रकृति (शरीर) का निर्माण करता है।

◎◎◎ अनियन, मॉस, शराब या कोई भी प्रकार का नशा….
जिसे लेने से ये शरीर भी अस्वीकार करता है।आपने देखा होगा, कोई भी ऐसा भोजन जो इस देह के लिए नही है उसको ये देह में डालते ही देह उसके कणों को बाहर फेंकता है और मुख से दुर्गन्ध आती है।जैसे- अनियन, अण्डा, शराब, बीड़ी, सिगरेट आदि।

◎◎◎ प्याज को तामसिक माना जाता है।इसलिए देवी- देवताओ को भी इसका भोग नही लगाया जाता।

◎◎◎ जितने व्रत रखते है उसमे भी इसका परहेज बताया जाता है।

◎◎◎ इसे तामसिक माना गया है।क्योंकि इससे तीव्र गंध आती है जो एकदम आसुरी लक्षण है। अभी हम देवता बन रहे है। देवियों की जड़ मूर्तियों के आगे भी कभी ऐसे तामसिक चढ़ावा नहीं रखते है। इसे खाने से मन पर कंट्रोल नहीं हो पाता और मन स्थिर न हो तो योग नहीं लग सकता है।

◎◎◎ जैसा होगा अन्न, वैसा होगा मन अगर हम लहुसन और प्याज खाते रहे तो पुरुषार्थ में जो रूकावट आएगी वो हमें पता नही पड़ेगा इसलिए शुद्ध भोजन पर भी पूरा-पूरा ध्यान देना पड़ेगा। लहसुन और प्याज दोनों ही तामसिक भोजन की श्रेणी में आते हैं।

◎◎◎ जरा गौर करें जो प्याज काटने पर आँखों में आंसू ला देता है, जो लहुसन खाने पर या जीभ पर रखने पर ही मुख में दुर्गन्ध पैदा कर देता है, तो उसको हमारा पेट कैसे झेलता होगा?

◎◎◎ इनको खाने सेे गैस भी ज्यादा बनती है और सिर में दर्द भी पैदा होता है और मस्तिष्क में भी कमजोर हो जाता है।

◎◎◎ मन बड़ा भटकता है योग नहीं लगने देता और कर्मेन्द्रियाँ भी धोखा देती है क्योंकि जैसा की हम सब जानते है कि शास्त्रों में भी यह तामसिक पदार्थ की श्रेणी में ही आते है, इसलिए ही तो मंदिरों में देवताओं को भी इसका भोग नहीं लगता, यह भक्तिमार्ग में भी निषेध माना गया है।

◎◎◎ तामसिक पदार्थ में अवगुण रूपी जहर होता है जो हमें धीरे-धीरे ज्ञान और योग से दूर ले जाता है। ब्राह्मण प्याज और लहसुन खाने से परहेज करते हैं ये देर से पचते है और योग साधना में हानिकारक है। इनसे चित की शांति और प्रसन्न्ता भंग होती है। यदि पवित्र बनना है तो इनका त्याग ही करना उचित हैं।

◎◎◎ जैसा होगा अन्न, वैसा होगा मन अगर हम लहुसन और प्याज खाते रहे तो पुरुषार्थ में जो रूकावट आएगी वो हमें पता नही पड़ेगा इसलिए शुद्ध भोजन पर भी पूरा-पूरा ध्यान देना पड़ेगा। लहसुन और प्याज दोनों ही तामसिक भोजन की श्रेणी में आते हैं।

◎◎◎ वैष्णवजन प्याज, लहसुन का उपयोग नहीं करते। प्याज शरीर को लाभ पहुंचाने के हिसाब से चाहे कितना ही लाभकारी और गुणकारी क्यों न हो लेकिन मानसिक और आध्यात्मिक नज़रिये से यह एक तेज और निचले दर्जे का तामसिक भोजन का पदार्थ है।इनकी तासीर या अवगुणों के कारण ही इनका त्याग किया गया है।

◎◎◎ इसी तरह से मांस खाने से शरीर में मांस भले ही बढ़ जाए लेकिन उससे मानसिक और आध्यात्मिक स्वास्थ्य की आशा कभी नही करनी चाहिए।

◎◎◎ इसको scientifically और spritually प्रूफ कीजिये क्यों नही खाना है??

◎◎◎ वैज्ञानिकों ने भी इस पर बहुत शोध किया है जिसका परिणाम है कि प्याज और लहसुन गर्म होते हैं जो हार्मोन्स को प्रभावित करते हैं, ये वासना के लिए प्रेरित करते हैं और मन के भीतर कामेच्छा बढ़ाते हैं फिर क्रोध का भी जन्म होता है, जिससे शरीर पर कीटाणुओं का असर बढ़ता है और आलस्य, थकावट, चिंता आदि लक्षण देखे जाते है।
जैसे शराब, तम्बाकु आदि शरीर के लिए हानिकारक है, वैसे ही प्याज़, लहसुन भी शरीर के लिए हानिकारक है और इसका प्रभाव आत्मा के पुरुषार्थ पर भी पड़ता है।

◎◎◎ हमारे ब्लड से तरंगे निकलती है जो हमारे मस्तिष्क तक पहुँचकर निर्णय शक्ति को बढ़ाने में मदद करतीं है । यदि हम प्याज लहसुन खाते हैं तो यह तरंगे मस्तिष्क तक नहीं पहुँच पातीं और हमारे सोचने विचारने की क्षमता प्रभावित होती है।

◎◎◎ इसमें ऐसे केमिकल पाये जाते है जो मन को उत्तेजित करते है जो क्रोध के संस्कार को बढ़ावा देता है।

◎◎◎ बिना लहुसन प्याज का खाना खाकर तो देखो कैसा लगता है? जो देवताओं को पसंद वो ही मेरी पसंद होनी चाहिए क्योंकि देवतायें कौन थे? हम ही तो थे और उसी सतयुगी दुनिया में जाने का ही तो पुरुषार्थ कर रहे है।

👉पवित्रता की धारणा मनसा, वाचा, कर्मणा द्वारा होती है।मानसिक पवित्रता ही शारीरिक पवित्रता का आधार है . मानसिक पवित्रता अर्थात आत्मा के स्वधर्म की स्मृति. शांति सुख ज्ञान आनन्द प्रेम के विचारों में रमण करना. सहज, सरल,मृदु भाव, आत्मिक भाव में रहना पवित्रता है।

प्याज़-लहसुन-क्यों-नहीं-खाना-चाहिए

👉तामसिक भोजन मानसिक अपवित्रता है।अन्न की शुद्वता हो जिसमें तामसिक भोजन लहसुन प्याज तीखा मिर्च मसाला मीट आदि ना हो। अधिक भोजन भी वर्जित है।

कोई भी व्यसन स्मोकिग शराब आदि नशे हमें हमारे मूल स्वभाव में ठहरने नहीं देते हैं शारीरिक कमजोरी पैदा करते हैं। मन में भारीपन, डर ,शंका, ईर्ष्या, घृणा, बदले की भावना पैदा करते हैं, काम , क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार, कुद्दष्टि, कुवृत्ति को बढावा देते हैं। संकल्पों में वेग उत्पन्न कराते हैं।

💠1)जिसे लेने से ये शरीर भी अस्वीकार करता है।
आप ने देखा होगा। कोई भी ऐसा भोजन जो इस देह के लिए नही है उसको ये देह में डालते ही देह उसके कणो को बहार फेंकता है और मुख से smell आती है।जैसे onion, अण्डा, शराब, बीड़ी और सिगरेट।

💠2) onion जिसके सिर्फ मात्र काटने से ही आँखों में पानी आने लगता है।उसको यदि 100% खाते है तो अंदर देह पर कितना इफ़ेक्ट करता होगा!

💠3) onion को तामसिक माना जाता हैइसलिये देवी देवतायें को भी इसका भोग प्रसाद के रूप में नहीं चढाया जाता है !

💠4)जितने व्रत रखते है उसमे भी इसका परहेज बताया जाता है।

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