भारत की आयु अपेक्षा यानी average life expectancy पिछले कुछ दशकों में बढ़ी है, पर यह बढ़ोतरी हमेशा समान नहीं रही। साधारण शब्दों में यह बताता है कि जन्म के समय औसतन एक व्यक्ति कितने साल तक जीवित रह सकता है। यह सिर्फ एक आंकड़ा नहीं, बल्कि स्वास्थ्य, पोषण, पर्यावरण और सामाजिक नीतियों का मिश्रित परिणाम है।
सरकारी आकड़ों और वैश्विक रिपोर्टों के अनुसार भारत में जीवन प्रत्याशा हाल के वर्षों में सुधार दिखा रही है — लगभग 65 से 70 साल के बीच अनुमान दिया जाता है, पर यह राज्य दर राज्य बदलती है। शहरी क्षेत्रों में बेहतर स्वास्थ्य सुविधाओं और सर्जिकल केयर की वजह से आयु अपेक्षा आम तौर पर ऊँची रहती है। ग्रामीण इलाकों और दूरदराज क्षेत्रों में उपलब्ध सुलभ स्वास्थ्य सेवाओं की कमी, खराब पोषण और साफ पानी की समस्या कारण बनती है कि वहां जीवन प्रत्याशा कम रहती है।
लिंग के आधार पर भी फर्क दिखता है: कई स्थानों पर महिलाओं की आयु अपेक्षा पुरुषों से थोड़ी अधिक रहती है, पर कुछ सामाजिक-आर्थिक स्थितियों में यह उल्टा भी हो सकता है। बच्चों की कम मृत्यु दर और वैक्सीनेशन कवरेज जैसे सुधारों का सीधा असर कुल जीवन प्रत्याशा पर पड़ता है।
किसी भी देश की जीवन प्रत्याशा पर असर डालने वाले बड़े कारक साफ हैं: रोग नियंत्रण (टीबी, मलेरिया, हृदय रोग, डायबिटीज), मातृ और शिशु देखभाल, पोषण, साफ पानी और स्वच्छता, वायु प्रदूषण, और स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुंच। इसके अलावा शिक्षा और आय का स्तर भी महत्वपूर्ण है — पढ़ाई और बेहतर आय से लोग स्वास्थ्य संबंधी फैसले बेहतर लेते हैं और स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुँच बनाते हैं।
नीति और निवेश का भी बड़ा रोल है। सार्वजनिक स्वास्थ्य पर खर्च, घातक बीमारियों के लिए स्क्रीनिंग, प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों का सशक्त होना और रोगों की समय पर पहचान—ये सब जीवन प्रत्याशा को ऊपर ले जाते हैं।
अब सवाल यह कि यह जानकारी आपके लिए क्यों जरूरी है? जीवन प्रत्याशा न केवल जनसांख्यिकी बताती है, बल्कि पेंशन योजना, बीमा, स्वास्थ्य देखभाल की जरूरतें और सरकार की प्राथमिकताओं को भी प्रभावित करती है। अगर आप परिवार योजना, निवेश या स्वास्थ्य बीमा सोच रहे हैं, तो जानना जरूरी है कि राष्ट्रीय और स्थानीय स्वास्थ्य रुझान क्या कह रहे हैं।
छोटी-छोटी आदतें फर्क डालती हैं: संतुलित आहार, नियमित स्वास्थ्य जांच, धूम्रपान से बचना, और हफ्ते में थोड़ी शारीरिक गतिविधि आयु अपेक्षा बढ़ाने में मदद कर सकती हैं। साथ ही, समुदाय स्तर पर स्वच्छता और टीकाकरण को बढ़ावा देना भी जरूरी है।
संक्षेप में, भारत की आयु अपेक्षा बढ़ रही है पर असमानता बनी हुई है। व्यक्तिगत स्तर पर आप स्वास्थ्य की साधारण सावधानियों से अपना और अपने परिवार का भविष्य बेहतर कर सकते हैं, जबकि नीति स्तर पर निरंतर निवेश और लक्षित कार्यक्रमों की जरूरत रहती है।
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